Maharana Pratap Ke Notes: महाराणा प्रताप के नोट्स Pdf

Maharana Pratap Notes: महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के महान योद्धा में से एक थे, जिनकी शौर्य और वीरता की कथाएँ आज भी हमारे दिलों में बसी हैं। उनके जीवन की यह अपूर्णनीय कहानी हमारे युगों तक याद की जाएगी। इस लेख में हम महाराणा प्रताप नोट्स, जीवन और उनके योगदान को विस्तार से जानेंगे।

Maharana Pratap Ke Notes

महाराणा प्रताप मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह और महाराणी जयवंती के पुत्र के रूप में 9 मई 1540 को जन्मे थे। वे राजपूत राजवंश सिसोदिया के सदस्य थे और उनका जन्म चित्तौड़गढ़ किले में हुआ था।

इस लेख में हम आपको महाराणा प्राताप से संबंधित Maharana Pratap Ke Notes की जानकारी प्रदान कर रहे हैं, जो परीक्षा के दौरान आपके लिए सहायक हो सकते है।

Maharana Pratap Ke Notes

Maharana Pratap Notes: Overview

  • नाम – कुँवर प्रताप (श्री महाराणा प्रताप सिंह जी)
  • जन्म – 9 मई, 1540 ई.
  • जन्म भूमि – कुम्भलगढ़, राजस्थान
  • पुण्य तिथि – 29 जनवरी, 1597 ई.
  • पिता – श्री महाराणा उदयसिंह जी
  • माता – राणी जीवत कँवर जी
  • राज्य – मेवाड़
  • शासन काल – 1568-1597ई.
  • शासन अवधि – 29 वर्ष
  • वंश – सुर्यवंश
  • राजवंश – सिसोदिया
  • राजघराना – राजपूताना
  • धार्मिक मान्यता – हिंदू धर्म
  • युद्ध – हल्दीघाटी का युद्ध
  • राजधानी – उदयपुर
  • पूर्वाधिकारी – महाराणा उदयसिंह
  • उत्तराधिकारी – राणा अमर सिंह

Maharana Pratap Jayanti

Maharana Pratap Jayanti विक्रमी संवत् कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है।

महाराणा प्रताप की जयंती भारत में महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह पर्व हर साल 9 मई को मनाया जाता है और इस दिन महाराणा प्रताप के जीवन और उनके योगदान को याद किया जाता है।

महाराणा प्रताप जयंती के मौके पर भारत भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें समाज में उनके योगदान को याद किया जाता है। स्कूलों और कॉलेजों में छात्रों को महाराणा प्रताप के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में जागरूक किया जाता है और वे उनके साहस और संघर्ष की कथाओं से प्रेरित होते हैं।

इस दिन लोग अपने घरों को सजाकर खुशियों के साथ मनाते हैं और महाराणा प्रताप के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण का संकेत देते हैं। यह त्योहार भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है और महाराणा प्रताप के महान योद्धा बनने के संदेश को हमें याद दिलाता है।

हल्दीघाटी की लड़ाई

हल्दीघाटी की लड़ाई 18 जून 1576 को लड़ी गई थी जो महाराणा प्रताप के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था। इस लड़ाई में उन्होंने मुघल साम्राज्य के बहादुर शाह जफर के खिलफ बहादुरतन ने की थी, लेकिन वे अंत में हार गए।

Maharana Pratap Importent Facts

Maharana Pratap Height – 7’5″ (7 feet 5 inch) 
Maharana Pratap Weight in Kg – 110 kilogram 
Maharana Pratap Ke bhale Ka Vajan – 80 kg
Maharana Pratap Kavach weight – 80 kg

महाराणा प्रताप के बारे में रोचक जानकारी

  • महाराणा प्रताप सिंह जी के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा ‘चेतक‘ था।
  • राजपूत शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा रहा करते थे।
  • वह दिन धन्य है, जब मेवाड़ की शौर्य-भूमि पर मेवाड़-मुकुटमणि राणा प्रताप का जन्म हुआ।
  • Maharana Pratap का नाम इतिहास में वीरता और दृढ़ प्रण के लिये अमर है।
  • महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालने का दम रखते थे।
  • कवच, ढाल, भाला और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलोग्राम था।
  • आज भी महाराणा प्रताप की तलवार, कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित रखा हैं।
  • अकबर ने कहा था कि अगर प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधे हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी। लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया था।
  • हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक तथा अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए थे।
  • महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर आज भी बना हुआ है।
  • महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा था और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाने का काम किया। इसी समाज को आज मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है। मैं नमन करना चाहता हूँ ऐसे लोगो को।
  • हल्दी घाटी युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई। आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था।
  • महाराणा प्रताप को अस्त्र – शस्त्र चलाने की शिक्षा “श्री जैमल मेड़तिया जी” ने दी थी जो 8 हजार राजपूत वीरों को लेकर 60 हजार मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48 हजार मारे गए थे जिनमे 8 हजार राजपूत और 40 हजार मुग़ल थे।
  • मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी के युद्ध में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे।
  • आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ भील हैं तो दूसरी तरफ राजपूत।
  • महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक प्रताप को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ। उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है और जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर बना हुआ है।
  • राणा प्रताप का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी।
  • अंत में मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85% मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी और महलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे थे।

Maharana Pratap Death

महाराणा प्रताप अपने पिता के समय से ही मुग़लों से लड़ते रहे थे । मेवाड पर लगे मुग़लों के इस ग्रहण का अंत 1585 में हुआ । इसके बाद Maharana Pratap अपने राज्य के सुख साधन के विकास में लग गए जिस मेवाड को मुग़लों ने उजाड दिया था उसे बसाने में लग गए थे। लेकिन दुर्भाग्य से 19 जनवरी 1597 को Maharana Pratap ki Death हो गई
टॉड के अनुसार मृत्यु के समय महाराणा को बहुत कष्ट हो रहा था , प्राण नही निकल रहे थे । शायद उन्हें उस समय भी मेवाड की रक्षा की चिंता सता रही थी । तब सलुम्बर के रावत जी ने हिम्मत करके पूछा महाराणा जी किस बात की चिंता सता रही है। तब महाराणा ने कहा मुझे मेवाड़ की चिंता सता रही है । 
कुंवर अमरसिंह कहीं मुग़लों की अधीनता स्वीकार ना कर ले तब सामंतो ने महाराणा को विश्वास दिलाया की हम कभी अमरसिंह को अधीनता स्वीकार नहीं करने देंगे , तब महाराणा के प्राण निकले।
महाराणा की मृत्यु किस रोग से हुईं इस विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इस विषय में कहा जाता है कि एक दिन शिकार करते समय उनके पाँव में चोट लग गयी । लगातार संघर्ष जीवन व कठिन परिश्रम से उनका शरीर कमजोर हो गया था , इस चोट के कारण महाराणा बीमार हो गए कुछ दिनो बाद उनकी मृत्यु हो गयी । 
अबुल फ़ज़ल ने आकरबरनमा में लिखा है कि अमरसिंह ने महाराणा को ज़हर दे दिया था इससे उनकी मृत्यु हुई । अबुल फ़ज़ल के अलावा इस बात का अन्य कही वर्णन नहीं मिलता किसी भी समकालीन इतिहासकार ने इस बात का उल्लेख नहीं किया , इस कारण अबुल फ़ज़ल का ये मत ग़लत माना जाता है ।
महाराणा प्रताप की मृत्यु टॉड पिछोला झील के पास लिखता है जबकि उनकी मृत्यु चावण्ड में हुईं थी। बाडोली में उनका अंतिम संस्कार हुआ। यहाँ पर स्मारक के रूप में एक समाधि बनी है, व 8 खम्भों की छतरी बनी है। यहाँ 1601 में महाराणा प्रताप की बहन के विषय में एक पाषाण लेख लगा दिया जिससे लोगों को भ्रम हो जाता है , की यह महाराणा की नही उनकी बहिन की समाधि है , जो सत्य नहीं है।

Maharana Pratap की मृत्यु पर Akbar की प्रतिक्रिया

महाराणा का जैसा चरित्र था वैसा उनके समकालीन किसी राजा का चरित्र नहीं था । उनका देश के प्रति अभिमान वीरता ओर चरित्र के कारण महाराणा प्रताप भारतीय संस्कृति के संरक्षक बन गए।
अकबर महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु था परंतु फिर भी वह महाराणा प्रताप की मन ही मन उनकी वीरता की प्रशंसा करता था। वह महाराणा प्रताप का गुण ग्राही था।
 महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर को बहुत दुख हुआ क्योंकि हृदय से उसके गुणों की प्रशंसा करता था ,महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर रहस्यमय रूप से मौन हो गया अकबर की यह प्रतिक्रिया दरबारियों से छिपी नहीं रह सकी किंतु कोई कुछ नहीं कह सका। उसी समय उनके दरबार में एक चारण कवि दुरसा आडा प्रताप के प्रति श्रद्धा युक्त कविता पढ़ी सभी दरबारियों को विश्वास था कि इससे चारण दुरसा को बादशाह का का कोप भाजक बनना पड़ेगा। 
सभी निर्णय की उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगे किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ अकबर ने दुरसा आडा को अपने सामने बुलाया तथा उसे पुन: कविता सुनाने का आदेश दिया चारण ने पुनः अपना छप्पय सुनाया जो इस प्रकार था:-
 “मारवाड़ी भाषा की कविता का हिंदी अर्थ इस प्रकार है जिसने कभी अपने घोड़ों को शाही सेना में भेजकर दाग नहीं लगवाया जिसने अपनी पगड़ी किसी के आगे नहीं झुकाई जो समस्त भारत के भार को को बाएं कंधे से खींचने में समर्थ था ,जो कभी न्योरोज के त्योहार पर नहीं आया और जिस अकबर के झरोखे के नीचे सभी राजा आये लेकिन महाराणा कभी नहीं आया इसलिए बादशाह अकबर की आंखों में भी पानी भर आया है उसने आश्चर्य से जीभ दांतो तले दबा ली है, हे प्रताप तू जीत गया है।”
 इस छप्पय को सुनने के बाद अकबर ने दुरसा आडा से कहा कि तुमने मेरे मनोभावों को अच्छी तरह से पढ़ लिया है इस पर उसने चारण को पुरस्कार भी दिया।
किसी की महानता को इससे बढ़कर और क्या प्रमाण हो सकता है कि उसकी शत्रु भी उसकी प्रशंसा करें वास्तव में महाराणा प्रताप की मृत्यु से मेवाड़ का ही नहीं भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया।

उनकी मृत्यु पर गोपीनाथ शर्मा लिखते हैं “प्रताप की मृत्यु से एक युग की समाप्ति होती है राजपूत राजनीति मच से एक सुयोग्य एवं चमत्कारी व्यक्ति चला गया अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता थी उसने अपने पड़ोसी राज्यों से मित्रता संबंध स्थापित कर चतुराई से मुगलों का ध्यान मेवाड़ से हटाकर उन राज्यों की ओर लगा दिया यह युक्ति सफल हो गई ।

अपने सैनिकों को कर्म परायणता का पाठ पढ़ाया प्रजा को आशावादी होने की प्रेरणा दी और शत्रु को उसके प्रति सम्मान प्रदर्शित करने की सीख दी।

Leave a Comment